Milan ki Aas - 1 in Hindi Fiction Stories by रामानुज दरिया books and stories PDF | मिलन की आस - भाग 1

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मिलन की आस - भाग 1

(मिलन की आस) 20-09-2022 Tuesday

आज एक बार फिर से दिल में मिलन की एक आस जगी है। ये दिल तो अपना हर पल उनके बाहों में बिताना चाहता है, लेकिन हम चाह कर भी नहीं मिल पाते हैं। क्युकी वो हमारे घर आ नहीं सकते और हम घर से बाहर जा नहीं सकते हैं।
क्युकी अब हमारी उम्र लड़कपन की नहीं रही, हमारा प्यार 17 साल वाला नहीं 27 वाला है। इसलिए हमें हर कदम बहुत सोच समझकर उठाना पड़ता है। इसकी एक और वजह है कि हमारा प्यार पर्दे के पीछे का है। सड़क छाप प्यार नहीं किए है कि खुल्लमखुल्ला प्यार करे। इसलिए घर,परिवार, गाँव समाज को भी देखना पड़ता है कि कहीं किसी के सामने थूथु ना हो।
तो उन्हें हमारे घर आने के लिए एक बहाने की जरूरत होती है। जब किसी के यहाँ कोई फंगशन होता है तभी वो आ सकते है।
और फंगशन होने का भी तभी फायदा है जब वो घर पे हो नहीं तो कोई फायदा नहीं। आने को तो पूरी दुनिया आ जायेगी लेकिन सिर्फ वही नही आयेगा जिसका इन आँखों को इंतज़ार होगा।
वो तो हमसे मिलने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं लेकिन हम इतने भी खुदगर्ज़ नहीं हो सकते हैं,कि अपने फायदे के लिए उन्हें मुसीबत में डाल दें।
हमे तो अब कोई अगर मिला सकता है तो वो भगवान श्री राम जी है अब उनके अलावा किसी और का कोई भरोसा नहीं है और अब किसी से कोई उम्मीद करना भी नही चाहिए, क्योंकि जो इंसान आपकी हेल्प करके आज आपको मिला देगा वो कल वक्त आने पर आपको टोन(ताने) भी सुनायेगा। इसलिए मुझे किसी की भी कोई हेल्प नही चाहिए। जो मेरी मदद कर सकते हैं मुझे उन्ही से मदद मांगनी भी चहिए। मुझे मेरे राम जी से अब स्वयं भगवान राम जी ही मिला सकते हैं। दिल में हलचल तो कल से ही थी कि वो कल आयेंगे और हम मिल भी नहीं पाएंगे, उन्हें हमसे बिना मिले ही वापस चलेजाना होगा। लेकिन पता नहीं क्यों आज(20-9-2मंगलवार) सुबह से ही मन में एक अलग सी उम्मीद जगी है, मिलन की एक आस लगी है, की आज हमे मिलना ही है।
सुबह जल्दी उठ कर नहा लिये कि आज मंगलवार है पूजा करनी है कर ले जो कि हम हर मंगलवार को करते हैं लेकिन ऐसा नहीं हो पाया मुझे जल्दी नहाता देख कर मेरी बहन ने खाने का इंतजाम करने में बहुत लापरवाही करना शुरू कर दिया इसलिए जबतक हम नहा कर निकले तबतक लेट होने लगा। तब हम सोचे की अगर हम पूजा करने चले गए तो ये लोग बिना कुछ खाये ही चले जायेंगे, अगर हम भगवान की पूजा करने लगे तो उन लोगों की पेट पूजा नहीं होगी। और इस तरह से मेरे पूजा करने से क्या फायदा की पूजा के चक्कर में सब भूखे चले जाए और पुरा दिन मुझे श्राप दे। जितना पूजा करने से पुण्य नही मिलेगा उससे ज्यादा तो मुझे पाप मिलेगा यही सोच कर हम पूजा करने नहीं गए और अपने गीले बालों को लपेट कर किचेन में घुस् गए और और सबको नास्ता और लंच देकर काम खत्म करके ही बाहर आये। फिर से हाथ,पैर,कपड़े साफ कर के सोचा कि अब पूजा कर ले आराम से लेकिन फिर भी मुझे इंतज़ार करना पड़ा क्यूकी मंदिर में वही पूजा कर रही थी जिसके चलते हम नहीं कर पाए थे उसे वहाँ देख हम गए ही नहीं इंतज़ार करते रहे जब वो वापस आई तब हम गए। धूप,अगरबत्ती, हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद भगवान से मेरी एक ही विनती थी कि हे भगवान मुझे आज मिला दो, हे राम जी प्लीज़, प्लीज राम जी मुझे मेरे राम जी से मिला दीजिये। मुझे पता है कि ये गलत है लेकिन क्या प्रेम करना गलत है? नहीं ना। तो जब प्रेम करना गलत नहीं है तो फिर प्रेम में मिलना गलत कैसे हो सकता है। क्या अपने प्रेम की ख्वाहिस(इच्छा) पूरी करना गुनाह है। मुझे पता है याद है हमे कि कभी एक समय हमने ही आपसे दुआ मांगी थी कि हे भगवान हम चाह कर भी कभी कोई गलत काम ना कर सके जो हमारी मर्यादा के खिलाफ हो। जिससे मेरा या मेरे परिवार (माँ बाप) का सर शर्म से झुक जाये।लेकिन भगवान जी क्या एक पत्नी अपने पति से नही मिल सकती है। आप क्या नहीं कर सकते हो, ऐसा क्या है इस पृथ्बी पर जो आपसे नहीं हो सकता है, कुछ भी करो भगवान जी बस मुझे मिला दो। ये सब आप कैसे करेंगे, कब करेंगे मुझे कुछ नहीं पता मुझे बस इतना पता है की आज मुझे मिलना ही है, और ये आपको करना ही होगा कैसे ये आप जानो,
कन्हैया कहाँ हो तुम? ये सब नही सुन रहे हैं मेरी बात समझ ही नहीं पा रहे हैं क्युकी ये मर्यादा पुरुषोत्तम है, मर्यादा के अंदर ही सब समझते और करते हैं।
लेकिन सारी मर्यादा को लाँघ कर प्रेम आपने भी तो किया था ना तो,आप तो समझो मेरा दर्द और प्लीज़ आप ही मिला दो। हनुमान जी से कहा कि बहुत दिन हो गये है आपसे कुछ नहीं मांगा, आज माँग रहे हैं मुझे मिला दीजिये और अगर आज आप मुझे मिला दिये तो अगले मंगलवार को हम 50rs का प्रसाद चढ़ाएँगे, अब तो मान जाइये ना। सभी देवी देवताओं आपसे विनम्रनिवेदन है कि मेरी विनती सुन ले। और मुझे मिला दे पहली बार की तरह जादा नही मांग रहे हैं बस 15 मिनट ही दे दीजिये लेकिन दूर दूर तक कोई डिस्टरबेंस ना हो। इतना कह कर सिर झुका कर चले आये। अभी तो दोपहर के 2 बज रहे हैं, उनको शाम को आना है देखते हैं भगवान मेरी कितना सुनते हैं।